चोटी की पकड़–53
मुन्ना ठंढ़ाई नहीं जानती थी। बढ़ती गई। कहा, "यह गुलाब-जामुन है।
"कौन? जो बाजार में बिकता है?"
"तो क्या आसमान पर बिकता है?"
"वह तो मिठाई है।"
मुन्ना रुकी। गुलाब जामुन कोई मिठाई है, यह उसको नहीं मालूम था। गुस्से में आकर कहा, "हम जैसा-जैसा सिखाते हैं, वैसा सीखो। सही है कि गुलाब जामुन कोई मिठाई हो, पर यह फल है। कुल पेड़ तुम्हें दिखाएँगे, नाम बताएँगे, याद करके सीख लो। तुम्हें जो मिठाइयाँ जल-पान के लिए दी जाती हैं, उनमें कभी गुलाब-जामुन आई?"
"हाँ, रोज़ आती है।"
"तुम्हें कुल किस्मों के नाम मालूम हैं?"
"नहीं।"
"गुलाब जामुन कौन-सी है?"
"काली-काली।"
"उसको यहाँ पान्तोआ कहते हैं।"
"वह हमारे वहाँ की-ऐसी नहीं।"
"यहाँ छेने की मिठाई बनती है। तुम्हारे उधर मैं जा चुकी हूँ। वहाँ की मिठाई इन लोगों को कम पसंद है।
यहाँ घर का दूध, घर का छेना है, और होशियार हलवाई नौकर है, यहीं बनाता है, यहीं का घी। तुम कभी त्योरी न चढ़ाया करो।
यह इतना बड़ा बाग़ीचा है। इसमें सैकड़ों किस्मों के फल हैं। तुम्हें आम, जामुन, अमरूद, जैसे थोड़े ही फलों की पहचान है। यह रानीजी की सास और पहले की रानियों का बागीचा है।
इनका बागीचा और बड़ा है, पेड़ जैसे हीरे और नीलम-जड़े पत्थरों पर खड़े हों, उनके थालों की नयी कारीगरी है। फलों की भी सैकड़ों किस्में हैं।
तुम जहाँ गई थीं, वह रानीजी का शयनागार नहीं। वहाँ बेशकीमत हजारों जिन्सें हैं। तुम्हें दस साल में भी कुल नाम न याद होंगे। जो बड़ी अनुचरी हैं, वह जानती हैं।
15 साल से कम की नौकरीवाली दासी का यह पद नहीं होता। वह जमादार की तरह दासियों से काम लेती है। तुम्हें नहीं मालूम कि बड़प्पन यहाँ नामों की जानकारी से है।
रानीजी हजारों चीज़ों के नाम जानती हैं। कभी इनके मुँह न लगना। अब नहा लो।
धोती घाट से सौ गज के फ़ासले पर उतारकर डाल दो और आधे घंटे तक नहाओ। फिर निकलकर बिना किसी की परवा किए ऊपर चली आओ।
तुम्हें तुम्हारा प्यार मिलेगा। तुम्हें इसकी ख्वाहिश है। शरमाओ नहीं। डटी खड़ी रहना। साड़ी बिना लिए चली आना। हमें दूसरा काम है। खबरदार, हुक्म की तामील सीखो।
बाद को समझ में आएगा कि रानीजी कितनी अपनी हैं। उनका भी हाल मालूम होगा। सिर चढ़ाचढ़ी तब न होगी जब दोनों एक। उधर जाओ।"